निमोनिया की वैक्सीन से बचेगी अब लाखों बच्चों की जान

निमोनिया की वैक्सीन से बचेगी अब लाखों बच्चों की जान

नरजिस हुसैन

एक तरफ देश में जहां पिछले कुछ महीनों से लोग कोरोना के कहर से परेशान हैं तो वहीं इसी बीच एक अच्छी खबर भी सुनने को मिली। हाल ही में भारत ने खुद निमोनिया की वैक्सीन बनाने में सफलता हासिल की है। हांलाकि, लोगों को इस वक्त सबसे ज्यादा इंतजार कोरोना की वैक्सीन का था। लेकिन, निमोनिया की वैक्सीन आने के बाद देश में वैक्सीन बनाने की अलग-अलग कंपनियों में कोरोना की वैक्सीन भी बनाने की उम्मीद और पक्की होती जा रही है।

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इस वैक्सीन के बाजार में आने के बाद देश में अब पांच साल से कम उम्र के बच्चों के टीकाकरण में विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहना होगा। दुनियाभर में बच्चों के लिए काम कर रही अतंरराष्ट्रीय संस्था युनिसेफ के मुताबिक 2018 में निमोनिया से मरने वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों में भारत का स्थान दुनिया में दुसरे नंबर पर है। 2017 में भारत में हर 39 सेकेंड में करीब 14 प्रतिशत पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मरने की वजह निमोनिया था। 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 1 लाख 27 हजार को भी पार कर गया यानी यहां हर घंटे पांच साल से कम उम्र के 14 बच्चे निमोनिया से मर रहे हैं।

पुणे स्थित सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया(जो देश में वैक्सीन बनाने के क्षेत्र में जाना-माना नाम है) में बनी वैक्सीन को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) ने भी मंजूरी दे दी है। निमोकोकल नाम की इस वैक्सीन को अब देशभर में सभी नवजात शिशुओं को दिया जाएगा। इससे देश में शिशु मृत्युदर की लगातार बढ़ रही दर भी काबू में आएगी। डीजीसीआई ने फेज-1,2 और 3 चरण के क्लीनिकल परीक्षण पूरे होने के बाद ही इस वैक्सीन को मंजूरी दी। सिरम ने ये सभी चरण भारत और गांमबिया में किए थे। हालांकि, सरकारी पहल और जागरुकता अभियान के चलते पिछले कुछ वक्त में निमोनिया से मरने वाले बच्चों की तादात में कुछ कमी भी हुई है लेकिन, इन पहल में बच्चियां अक्सर छूटी जा रही थी। ये वैक्सीन देश में अब हर जगह आसानी से कम पैसों में मिलेगी।

निमोनिया लाइलाज बीमारी नही है। बावजूद इसके आज दुनिया में पांच साल से कम उम्र के 16 फीसद बच्चे इससे मर रहे हैं। निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगी से होता है। निमोनिया और गरीबी के संबंध को भी नकारा नहीं जा सकता। पीने के साफ पानी की कमी, साफ-सफाई न होना, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, वायु प्रदूषण और कुपोषण इस बीमारी के सीधे तौर पर जिम्मेदार है। निमोनिया सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि किशोरों, युवाओं और बुजुर्गों को भी होता है जो शुरूआत में तो हल्के लक्षणों से लेकिन, बाद में लक्षणों के गंभीर होने से मोर्बिटी के कारण अधिकतर लोगों की जान जाती है।

छोटे बच्चों में निमोनिया होने से उनके फेफड़ों में पस या पानी भर जाता है जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है और जो आखिर में उनके मरने की वजह बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि निमोनिया को वैक्सीन के बिना भी सस्ती दवाओं और अच्छे खान-पान के जरिए रोका जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक 2020 के आखिर तक इस वैक्सीन की ठीक-ठाक डोज 7 लाख लोगों को निमोनिया से मरने से बचा सकते हैं।

 

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